Tuesday, December 22, 2009

चांदपुर - जहाजपुर (उ.प्र) के ऐतिहासिक भग्नावशेष

तो आइये आज हम जाने चांदपुर - जहाजपुर के बारे में |

आप में से शायद ही किसी ने चांदपुर के भग्नावाशेशो के बारे में पढ़ा या सुना होगा, मुझे भी ज्ञात नहीं था , किन्तु जब मैं देवगढ जिला ललितपुर गया तो मुझे इस स्थान के बारे में कुछ आदिवासियों से पता चला | ये स्थल मेरी बुंदेलखंड तीर्थ यात्रा को और अधिक सार्थक बना गया | चलचित्रों के लिए यहाँ क्लिक करे |

मुझे इस स्थान पर जाने से लगभग सभी ने रोका क्योंकि यह एक कच्ची पगडण्डी पर मुख्य सड़क से ३ किमी की दूरी पर था जहाँ बीच में नाला भी पार करना पड़ता है, दूसरा वहां कोई भी देखरेख करने वाला भी नहीं है | कोई पुजारी आता है और पूजा करके वापस चला जाता है | हाँ ! गाँव के २- ४ बच्चे ज़रूर पास ही में खेलते नज़र आ जाते है | किन्तु मेरा निश्चय अटल होने से मैं नहीं रुका | मैं बड़ी मुश्किल से वहां पंहुचा क्योंकि कोई रास्ता बताने वाला भी नहीं था | आभारी हूँ सरकार का , जो सड़क तो नहीं बनवा पायी लेकिन एक बोर्ड तो लगा है मुख्या सड़क से मुड़ते हुए |
बिलकुल रेल की पटरियों के पास ही यह क्षेत्र अवस्थित है किन्तु आप इसे रेल से देख नहीं सकते , क्योंकि एक तो इसका पिछ्वारा है और दूसरा घनी झाड़ियाँ है | खेर जैसे तैसे पहुचे , लेकिन सत्य में वहां कोई नहीं था| बस शान्ति ही थी चारो और जिसे पटरियों से गुजरती रेलों की धराधर ही तोड़ती थी | सामने था एक युग पुराना इतिहास , कला
और संस्कृति के कुछ अवशेष जो उचित देखरेख के अभाव में या तो भग्न हो गए है या मूर्तिचोरो की बन आयी है |पिछले २५ वर्षो में क्षेत्र को जितना नुक्सान पंहुचा उतना तो शायद १००० वर्षो में भी नहीं हुआ था |

चांदपुर - जहाजपुर ललितपुर बीना रेल खंड पर धोर्रा स्टेशन से २ किमी की दूरी पर घने झाड़ियों वाले जंगल में फैला है |रेल लाइन का पूर्वी भाग चांदपुर तथा पश्चिमी भाग जहाजपुर नाम से जाना जाता है | यहाँ अनेको हिन्दू , जैन देवी देवताओं तथा तीर्थंकरो की मूर्तिया , कलात्मक पत्थर आदि जंगल में बिखरे पड़े है | देवस्थान विभाग ने सिवाय कोट बनाने के और कुछ नहीं किया है | मेरे लिए एक ही जगह जाना संभव हो पाया क्योंकि हमारी जीप ख़राब हो गयी थी |
वहां एक अहाते में तीन मंदिर थे जिसमे एक में श्री शांतिनाथ तीर्थंकर की ४.५ मीटर ऊंची प्रतिमा है जिसे आज भी गाँव वाले पूजते है और मानते है | अब वहां जैन तीर्थ कमिटी की और से विकास के कुछ प्रयास किये जा रहे है किन्तु स्थान सरकार का होने से कुछ ख़ास सुधार नहीं हुआ है | जब सरकार जीते जागते इंसानों की और ध्यान नहीं देती तो वो तो भ्ग्नाव्शेस है |वहां दो कमरे बनाये गए है निजी जामें पर ताकि कोई कम से कम १ - २ घंटे ही बिता सके यदि बिताना चाहे |

अगली बार मिलते है किसी और स्थान को लेकर | जुड़े रहिएगा |

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