तो अगली कड़ी के रूप में आज प्रस्तुत है ग्वालियर की जैन गुफाएं |
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यहाँ कुल २६ गुफाये है , जिनमे तीर्थंकरो की विशाल तथा छोटी प्रतिमाये है | ये गुफाये ग्वालियर किले के पीछे की और पहाड़ में ही बनी है (गोपाचल पर्वत ) और गुफा १ के ऊपर बावड़ी होने के कारण "एक पत्थर की बावड़ी " नाम से जानी जाती है |यहाँ के अभिलेखों में राजा डूंगर सिंह (१४२५-५९ इसवी ) एवं कीर्ति सिंह का नाम आता है | माना जाता है की ये गुफाये ६०० से ७०० वर्ष प्राचीन है |
इन मूर्तियों की विशालता, सुन्दरता और शिल्पकारों, मूर्तिकारों की कला देखकर मन गदगद हो जाता है , स्वयं ही श्रधा से भर उठता है | परन्तु विडम्बना यही है की इन प्रतिमाओ के सर , हाथ या पैर आतताइयों (लड़ाको) ने दूषित राजनीती तथा द्वेष वश काट लिए थे (300 या ४०० वर्ष पहले) | मात्र एक प्रतिमा ही ऐसी है जो पूर्ण है ४२ फीट ऊंची पद्मासन मुद्रा में |
फिर भी धन्य है वे लोग , वे राजा जिन्होंने जान दे दी , किंतु जीते जी संस्कृति की रक्षा की | आज पुनः इनके संरक्षण की महती आवश्यकता है, आवश्यकता है इस धरोहर और संस्कृतिक धार्मिक स्थल को गुंडा, आवारा तत्वों से बचाने की और इस दिशा में सरकार तथा जैन समाज दोनों की और से प्रयास जारी है |
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